“बदला हुआ भारत: क्रिकेट और आत्मसम्मान का नया अध्याय”

एशिया कप 2025 का फाइनल केवल क्रिकेट का खेल नहीं था। भारत ने पाकिस्तान को हराने के साथ ही ट्रॉफी स्वीकार करने से इनकार कर दिया, क्योंकि पुरस्कार देने वाला पाकिस्तान का प्रतिनिधि था। इससे प्रस्तुति समारोह घंटों तक लंबित रहा। इस कदम ने केवल खेल में जीत नहीं दिखाई, बल्कि राष्ट्रीय आत्मसम्मान और राजनीतिक […]

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टिटहरी: प्रकृति की मौन चेतावनी

टिटहरी कोई साधारण पक्षी नहीं, बल्कि प्रकृति का मौन प्रहरी है। किसान उसके अंडों की संख्या, स्थान और समय देखकर बारिश, बाढ़ या अकाल का अनुमान लगाते रहे हैं। विज्ञान भी मानता है कि ऐसे पक्षी “इकोसिस्टम इंडिकेटर” होते हैं, जो पर्यावरणीय बदलावों का पहले से संकेत दे देते हैं। आज शहरीकरण और रसायनों के प्रयोग […]

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“एक दिवस में क्यों बंधे, हिन्दी का अभियान।

रचे बसे हर पल रहे, हिन्दी हिन्दुस्तान।। ” हिंदी दिवस केवल एक औपचारिक उत्सव न रह जाए, बल्कि यह हमारी चेतना और जीवन का स्थायी हिस्सा बने। भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और आत्मगौरव की पहचान है। यदि हम अपने घर, शिक्षा, तकनीक और कार्यस्थल पर हिंदी को सहजता से अपनाएँ, […]

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है हिंदी यूं हीन ।।

बोल-तोल बदले सभी, बदली सबकी चाल । परभाषा से देश का, हाल हुआ बेहाल ।। जल में रहकर ज्यों सदा, प्यासी रहती मीन । होकर भाषा राज की,  है हिंदी यूं हीन ।। अपनी भाषा साधना, गूढ ज्ञान का सार । खुद की भाषा से बने, निराकार, साकार ।। हो जाते हैं हल सभी, यक्ष […]

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परंपराओं से कटाव और समाज का विघटन

– डॉ सत्यवान सौरभ भारत, एक ऐसा देश जहां संस्कृति, धर्म, कला, और साहित्य की जड़ें सदियों से फैली हुई हैं, आज एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। यह देश विविधताओं में एकता का प्रतीक है, और इसकी सांस्कृतिक धरोहर विश्वभर में प्रशंसा पाती है। लेकिन पिछले कुछ दशकों में, वामपंथी विचारधारा ने भारतीय समाज […]

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युद्धविराम के पीछे का सच

–डॉ.सत्यवान सौरभ युद्धविराम पर चर्चा से पहले यह समझना जरूरी है कि किसी भी देश का प्रमुख उद्देश्य अपने नागरिकों की सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा होता है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्राथमिकता भी यही है – देश की अखंडता और जनता की सुरक्षा। लेकिन जब कोई युद्धविराम होता है, तो उसके पीछे […]

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“युद्ध और शांति”

मृत्यु की भूमि पर बिछी रेतें हैं,जहाँ पांवों के निशान रह जाते हैं।संगीनें न हो, तो भी रक्त का रंग,समय के थपेड़े फिर भी जगाते हैं। हां, युद्ध से पिघलती है शांति की शिला,धधकते अंगारों पर तपती जीवन की माया।कभी अहंकार के काले बादल छाए थे,अब आकाश में बिछा सफेद प्रेम का साया। युद्ध ने […]

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केसीसी के नाम पर चालबाज़ी: निजी बैंकों की शिकारी पूँजी और किसानों की लूट

निजी बैंक किसानों को केसीसी योजना के तहत ऋण देते समय बीमा और पॉलिसियों के नाम पर चुपचाप उनके खातों से पैसे काट लेते हैं। हाल ही में राजस्थान में एक्सिस बैंक की ऐसी ही करतूत उजागर हुई जब एक किसान ने वीडियो बनाकर सच्चाई सामने रखी। यह केवल एक घटना नहीं, बल्कि पूरे बैंकिंग […]

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जयंती का शोर, विचारों से ग़ैरहाज़िरी!

बाबा साहब के विचारों, जैसे सामाजिक न्याय, जातिवाद का उन्मूलन, दलित-पिछड़ों को सत्ता में हिस्सेदारी, और संविधान की गरिमा की रक्षा—को आज के राजनेता पूरी तरह नजरअंदाज कर रहे हैं। राजनीतिक दल केवल वोट बैंक के लिए अंबेडकर की जयंती मनाते हैं, जबकि वे उनके विचारों से कोसों दूर हैं। जिन मुद्दों के लिए बाबा […]

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सार्थक भागीदारी के बिना कैसे हल होंगे आधी दुनिया के मसले!

महिला दिवस विशेष अगर आधी आबादी से होते हुए भी महिलाएँ इस आबादी की कहानियाँ नहीं कहेंगी, तो कौन कहेगा? केवल महिला दिवस पर ही नहीं, हर रोज़ महिलाओं को लड़ाई लड़नी पड़ेगी इस बदलाव के लिए, अपने हक़ों के लिए। छोटी शुरुआत ही सही, लेकिन शुरुआत सबको करनी पड़ेगी। ये संघर्ष का सफ़र अंतहीन […]

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