बदरीनाथ के ब्रह्म कपाल में जुटने लगे पितरों के श्राद्व को वंशज

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चमोली (देशयोगी क्रांति भट्ट)। उत्तराखंड के चमोली जनपद स्थित विश्व प्रसिद्ध, मोक्ष के धाम श्री बदरीनाथ के ब्रह्म कपाल तीर्थ में पितरों का पिंडदान और उन्हें तर्पण देने का शास्त्रीय विधान और मान्यता है। श्राद्ध पक्ष में सम्पूर्ण भारत वर्ष ही नहीं, अपितु नेपाल और इंडोनेशिया सहित अनेक देशों के हिन्दू धर्मानुयायी श्रद्धालु यहां आस्था, श्रद्धा से अपने पितरों का पिंडदान और तर्पण करने पहुँचते हैं। पितरों के प्रति श्रद्धा का यह भाव ऐसा है, जिससे प्रभावित रुस, आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और आस्ट्रिया आदि देशों के श्रद्धालु भी बदरीनाथ स्थित ब्रह्म कपाल तीर्थ में अपने पूर्वजों का पिंडदान करने आते हैं। 

जानकार बताते हैं कि बदरीनाथ के ब्रह्म कपाल में पितरों का पिंडदान, बिहार राज्य स्थित बौद्ध गया से आठ गुना अधिक फल देने वाला है। ब्रह्म कपाल तीर्थ पुरोहित समिति अध्यक्ष उमेश सती ने बताया, कि पवित्र श्राद्ध पक्ष शुरू होते ही बदरीनाथ धाम स्थित ब्रह्म कपाल में श्रद्धालुओं की भीड़ जुटनी शुरू हो गई है। ब्रह्म कपाल में पितरों को पिंडदान का विशेष महात्म्य है। उन्होंने बताया कि स्कंद पुराण में इस पवित्र स्थान को गया से आठ गुना अधिक फलदायी तीर्थ कहा गया है।

उल्लेखनीय है कि बदरीनाथ धाम से करीब पांच सौ मीटर की दूरी पर स्थित ब्रह्म कपाल में अलकनंदा नदी के किनारे एक विशाल शिला (पत्थर) मौजूद है। जहां हवन कुंड में पितरों के उद्धार के लिए पिंडदान कर हवन क्रिया की जाती है। तीर्थ पुरोहित विवेक सती, अजय सती और, सुबोध हटवाल बताते हैं कि यदि किसी व्यक्ति की अकाल मृत्यु हो जाए तो ब्रह्म कपाल में श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने से दिवगंत की आत्मा को शांति मिलती है।

बदरीनाथ मंदिर के पूर्व धर्माधिकारी भुवन  उनियाल, ब्रह्म कपाल तीर्थ पुरोहित संघ के अध्यक्ष पंडित उमेश सती कहते हैं कि ब्रह्म कपाल में पित्रों का पिंडदान करने से पित्रों की आत्मा को शांति मिलती है। तर्पण करने से पहले तप्तकुंड में स्नान करने के बाद तीर्थ पुरोहित के साथ ब्रह्म कपाल में पितरों का ध्यान किया जाता है। पितरों को श्रद्धा भक्ति से पूजने पर धन-धान्य में वृद्धि होती है। पंडित उमेश सती कहते हैं कि पितरों का श्राप देवताओं से भी अधिक कष्टकारी होता है। उन्होंने ज्योतिष शास्त्र का हवाला देते हुए बताया कि जिनके पितर नाराज हो जाते हैं, उनकी ग्रह दशा अच्छी भी हो, तब भी उनके जीवन में हर पल परेशानी बनी रहती है।

पौराणिक मान्यता है कि सृष्टि की उत्पति के समय किसी कारणवश भोलेनाथ ने गुस्से में आकर ब्रह्मा के पांच सिरों में से एक को त्रिशूल के वार से काट दिया। तब  ब्रह्मा के सिर त्रिशूल पर ही चिपक गये थे। ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए जब भोलेनाथ पृथ्वी लोक के भ्रमण पर गए तो बदरीनाथ से करीब पांच सौ मीटर की दूरी पर त्रिशूल से ब्रह्मा का सिर जमीन पर गिर गया। तभी से यह स्थान ब्रह्म कपाल के रुप में प्रसिद्ध हुआ। शिव भी इसी स्थान पर ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हुए थे। गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए स्वर्ग की ओर जा रहे पांडवों ने भी इसी स्थान पर अपने पितरों को तर्पण दिया था।

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