लुधियाना। दलितों के उत्थान एवम् उन्हें बराबरी का दर्जा दिलवाने के लिए आजीवन संघर्षरत् रहीं सुप्रसिद्ध समाजसेविका पुष्पलता उपाध्याय की पार्थिव देह रविवार को पंच तत्व में विलीन हो गई। मुखाग्नि उनके पुत्र चंद्रशेखर ने दी।उल्लेखनीय है श्रीमती उपाध्याय का 11 जून की देर-रात्रि पंजाब के लुधियाना शहर में देहावसान हो गया था। अमृतसर में जन्मी श्रीमती उपाध्याय को नियति अन्तिम समय में उनकी जन्मभूमि में ही ले आयी। जन्म के समय उनके पिता पण्डित ब्रजमोहन तिवारी अमृतसर में रेलवे के बड़े ओहदे पर तैनात थे । वह प्रख्यात न्यायविद् एवम् ‘हिन्दी से न्याय ‘ इस देशव्यापी अभियान के नेतृत्व-पुरुष चन्द्रशेखर पण्डित भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय की माॅ है। वह संघ के प्रचारक एवम् भारतीय-जनसंघ के सबसे कम आयु के राष्ट्रीय-मंत्री रहे पण्डित के.सी . उपाध्याय को ब्याही थीं, विवाह से पूर्व राष्ट्र सेविका समिति की कार्यकर्ती के दायित्व का निर्वहन भी उन्होंने किया। विवाह के पश्चात भारतीय जनसंघ में राजमाता विजया राजे सिंधिया एवम् हींगोरानी के साथ जन-आन्दोलनों में सक्रिय रहीं। बाद में तत्कालीन संघ प्रमुख गुरु गोलवरकर के शुभाशीष से दलितों को उनका हक दिलाने के लिए लड़ती रहीं । वह भारतीय-जनसंघ के सबसे बड़े परिवार में ब्याही थीं। परिवार में संघ एवम् भारतीय-जनसंघ के राष्ट्रीय नेताओं के अलावा प्रख्यात सोशलिस्ट डाक्टर राम मनोहर लोहिया, राजनारायण चौधरी चरण सिंह समेत अनेक बड़ी राजनीति हस्तियों का लगातार आना-जाना रहता था। अपने जीवनकाल में उन्होंने सभी के लिए भोजन पकाया । श्रीमती इन्दिरा गाँधी उनके संघर्ष से बहुत प्रभावित थीं। उन्होंने 1975 में उन्हें कांग्रेस में आने का निमंत्रण दिया था। उस समय उनके पति मीसा-बन्दी के रूप में जेल में बन्द थे। पूरा घर सील था। उनके निकट रिश्तेदार आगरा से कांग्रेस के विधायक थे। उन्होंने इन्दिरा जी को कहा था,’ मैं आपकी नेतृत्व-क्षमता से चमत्कृत हूँ, लेकिन मैं आपके आपातकाल लागू करने के फैसले से सहमत नहीं हूँ,’ इन्दिरा जी ने इस पर उनकी प्रशंसा की थी। उन्होंने आपातकाल के कारण अल्पायु में अपने पति को खोया था ।