विजयादशमी का संदेश राजनीति में आत्मसात करने की जरूरत

संपादकीय

देशयोगिनी कविता पंत

बुराई पर अच्छाई और अधर्म पर धर्म की जीत के संकल्प के साथ विजयादशमी पर्व इस बार अनेक अवसरों के साथ चुनौतियां लेकर आया है। देश के विकास की रफ्तार तेज हुई है और सरकारी खजाने की हालत अपेक्षाकृत पहले से कहीं ज्यादा बेहतर है। जनकल्याण की योजनाओं का दायरा निरंतर बढ़ रहा है और जरूरतमंद लोगों की सहायता के लिए धन मुहैया कराया जा रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर मुफ्त अनाज की व्यवस्था महायज्ञ के समान है और इसमें अभी तक कोई अवरोध पैदा नहीं हुआ है, केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार इस मामले में साधुवाद की पात्र है। 

कोई भूखा नहीं रहे, इस लक्ष्य की प्राप्ति से जीवन यापन की बाधाओं को पार करते हुए कर्म को सर्वोपरि मानकर समाज आगे बढ़ सकता है। इस दिशा में रोजगार के बेहतर अवसर को प्रतिपादित करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की ज्यादा है। केवल केन्द्र सरकार पर ठीकरा फोड़ कर राज्य सरकारें अपने दायित्व से बच नहीं सकती।

सामाजिक सौहार्द बनाए रखने की पहली जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है क्योंकि कानून और व्यवस्था का दायित्व उनके पास है।बदलते दौर में राजनीतिक दल अपने राष्ट्रीय कर्तव्य से दूर होते जा रहे हैं जो बड़ी चिंता का विषय है। धर्म के नाम पर अधर्म की राजनीति का चलन बढ़ा है और अब नये सिरे से जातिवाद का जहर घोलने की राजनीति को बढ़ावा दिया जा रहा है। यह समाज और देश के लिए घातक है। 

हमारे संविधान निर्माताओं ने समाज के निचले तबके को समान अवसर दिलाने के लिये शिक्षा, रोजगार और राजनीति में आरक्षण की व्यवस्था करते हुए अपेक्षा की थी कि एक समय ऐसा आयेगा जब सबको स्वत: समान अवसर मिलने लगेगा। यह सही है कि अभी हम संविधान निर्माताओं की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे हैं जिसके अनेक कारण हैं। इसमें तेजी से बढ़ती आबादी सबसे बड़ी बाधक है और और इस दिशा में हर नागरिक को अपनी सामाजिक जिम्मेदारी निभाने की नितांत आवश्यकता है। नये संसाधनों की प्राप्ति की कोशिशें जारी है लेकिन आबादी पर नियंत्रण नहीं होने के कारण विकास कार्य निरर्थक साबित होते जा रहे हैं। 

विकसित देशों की विकास गाथा को आगे बढ़ाने में वहां की संतुलित आबादी को बड़ा कारण माना जा सकता है। आबादी कम होने के वहां पर विकास कार्य दिखाई देता है और जनता को उसका पूरा लाभ मिलता है। रोजगार के साथ अनुसंधान ने जीवन को और सहज बनाया है। भारत को अपनी जरूरतों को फिर से चिन्हित करने की जरूरत है और राजनीतिक दलों का कर्तव्य है कि वे एक साथ बैठकर राष्ट्रीय कर्तव्य की नई रुपरेखा तैयार करें। विजयादशमी के संदेश को राजनीति में आत्मसात करके ही जीवन की नयी गाथा लिखी जा सकती है।

(लेखिका देश की वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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