कन्वर्जिंग पाथ्स: ब्रिजिंग ट्रेडिशनल प्रैक्टिसेज एंड मॉडर्न साइंस पर विशेषज्ञों का सम्मेलन 

राष्ट्रीय

देहरादून (देशयोगी पंकज)। डॉल्फिन (पीजी) इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल एंड नेचुरल साइंसेज, देहरादून में गुरुवार को उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान केंद्र (यूसर्क) के सहयोग से दो दिवसीय “कनवर्जिंग पाथ्स: ब्रिजिंग ट्रेडिशनल प्रैक्टिसेज एंड मॉडर्न साइंस” विषयक एक राष्ट्रीय सम्मेलन शुरू हुआ। इसका उद्देश्य, विभिन्न विषयों में समकालीन वैज्ञानिक प्रथाओं के साथ पारंपरिक ज्ञान के एकीकरण का पता लगाना और उसे बढ़ावा देना है। इसमें 10 राज्यों के 150 से अधिक शिक्षक, शोधार्थी और छात्र, छात्राएं प्रतिभाग कर रहे हैं। साथ ही, 35 मौखिक (ओरल) और 35 पोस्टर शोध पत्र प्रस्तुत किए जा रहे हैं। इस अवसर पर, एक स्मारिका का विमोचन भी किया गया।

सम्मेलन का उद्घाटन मुख्य अतिथि, निदेशक, यूसर्क, प्रोफ़ेसर (डॉ.) अनीता रावत ने देवी सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलित कर किया। अपने संबोधन में उन्होंने पारंपरिक प्रथाओं पर फिर से विचार करने के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि हमें पारंपरिक ज्ञान का पालन करना चाहिए और उसकी वकालत करनी चाहिए, क्योंकि यह हमारी जड़ों में छिपा है। उन्होंने आह्वान किया कि हम सभी को अपनी जड़ों की ओर लौटना चाहिए और स्थिरता की दिशा में काम करना चाहिए।” 

डॉ. रावत ने कहा कि हमारा दर्शन “वसुधैव कुटुम्बकम” का दर्शन रहा है। युवाओं के पास अभिनव विचार और चुनौतियों से निपटने की क्षमता है। जो दुनिया को बदल सकती है। उन्होंने युवा दिमागों से सामाजिक बेहतरी के लिए अपनी क्षमता का दोहन करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि यदि हम जमीनी स्तर पर काम करते हैं, तो हम सार्थक परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने सभी का आह्वान किया कि अपने संसाधनों को संरक्षित और  संवर्धित करने के लिए लक्ष्य आधारित सामाजिक, संस्थागत, आर्थिक और सामाजिक-आर्थिक कार्यों को आगे बढ़ाएं। उन्होंने यूएसईआरसी द्वारा 150 से अधिक “विज्ञान चेतना केंद्रों” की स्थापना का भी उल्लेख किया, जो जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए क्षमता निर्माण और वैज्ञानिक ज्ञान को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

राष्ट्रीय सम्मेलन के विशिष्ट अतिथि, बार्क (भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर), मुंबई के एचएस एवं ईजी निदेशक डॉ. डीके असवाल ने डॉ. रावत की भावनाओं को दोहराते हुए कहा कि हमारी परंपराओं में कई विधियाँ हैं, जो वैज्ञानिक महत्व से भरपूर हैं। अगर हम इन प्रथाओं को अपने समकालीन जीवन में लागू करते हैं, तो वे समाज की बेहतरी के लिए क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं।”

उद्घाटन सत्र के बाद, सम्मेलन में दो तकनीकी सत्र हुए। जिसमें पहला सत्र स्वास्थ्य सेवा नवाचार पर आधारित रहा। जिसमें भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (आईआईपी),  देहरादून के वैज्ञानिक डॉ. देबाशीष घोष ने स्वास्थ्य सेवा नवाचारों के बारे में आधुनिक वैज्ञानिक प्रगति और पारंपरिक उपचार पद्धतियों दोनों पर आधारित विचार प्रस्तुत किए।

इसी मध्य, प्रतिभागियों के शोध को प्रदर्शित करते हुए एक पोस्टर सत्र आयोजित किया गया, जिससे उपस्थित लोगों के बीच ज्ञान साझा करने और नेटवर्किंग की सुविधा मिली। इसके पश्चात, दूसरे सत्र में संधारणीय कृषि और पर्यावरण संरक्षण पर चर्चा की गई। जिसमें प्रसिद्ध पारिस्थितिकीविद् डॉ. सौम्या प्रसाद ने कृषि में संधारणीय प्रथाओं के महत्व और पर्यावरण संरक्षण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डाला। 

इस दौरान, संस्थान की प्राचार्या डॉ शैलजा पंत, डॉ वर्षा पर्चा, डॉ श्रुति शर्मा, डॉ दीपक कुमार, डा प्रभात सती, डॉ ज्ञानेंद्र अवस्थी, डॉ आशीष रतूड़ी, डॉ संध्या गोस्वामी, डॉ बीना जोशी भट्ट, डॉ दीप्ति वारिकू, डॉ तृप्ति मलिक आहूजा, डॉ विकास पॉल सिंह, डॉ शालिनी सिंह, डॉ वीरेंद्र कुमार, डॉ दीपाली राणा, डॉ प्रिंस, डॉ अंकुर अधिकारी, डॉ राजू चंद्रा, डॉ ऋतु सिंह, सुनील कौल और सुधीर भारती के साथ, देश भर से आए प्रतिभागी, शिक्षक तथा छात्र छात्राएं उपस्थित थे।

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