कविता पंत
स्त्री रोग संबंधी कैंसर दुनिया भर की महिलाओं के लिए एक बड़ा स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर रहे हैं। ये कैंसर प्रजनन अंगों को प्रभावित करते हैं और महिला के जीवन पर गहरा असर डाल सकते हैं। हाल में समाप्त क्वाड देशों के सम्मेलन में कैंसर से लड़ने के लिए कैंसर मूनशॉट कार्यक्रम बनाया गया। इसके अंतर्गत सबसे पहले गर्भाशय के कैंसर पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा।
कैंसर मूनशॉट हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में जीवन बचाने के लिए एक अभूतपूर्व साझेदारी है। ‘एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य’ की भावना पर बल देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘क्वाड कैंसर मूनशॉट’ पहल के लिए 7.5 मिलियन डॉलर के सैंपलिंग किट्स, डिटेक्शन किट्स और टीकों में सहयोग करने की घोषणा की।
कैंसर पर ज्यादा से ज्यादा वैज्ञानिक अनुसंधान करने के लिए 2016 में कैंसर मूनशॉट कार्यक्रम शुरू किया गया था। तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 12 जनवरी, 2016 को इसकी शुरुआत की थी। कानून बनाकर इसके लिए बजट का प्रावधान किया गया। ओबामा ने उस समय उपराष्ट्रपति रहे जो बाइडन को ही टास्क फोर्स की जिम्मेदारी सौंपी। जो बाइडन ने इस पहल को आगे बढ़ाया, क्योंकि 2015 में उनके बेटे ब्यू बाइडन का कैंसर से निधन हो गया था। फिलहाल इस पहल का दूसरा चरण चल रहा है, जिसका नेतृत्व बाइडन कर रहे हैं।
इस कार्यक्रम के 2 बड़े लक्ष्य हैं। पहला- 2047 तक 40 लाख से अधिक कैंसर से होने वाली मौतों को रोकना और दूसरा- कैंसर से पीड़ित लोगों के अनुभव में सुधार करना। इसके अलावा कैंसर और इसकी रोकथाम, शीघ्र पहचान, उपचार के बारे में समझ बढ़ाना, रोगी की देखभाल में सुधार, शोध, उपचार के विकास को प्रोत्साहित करना, बाधाओं की पहचान और उनका समाधान करना और प्रशासनिक सुधारों में तेजी लाने के तरीकों पर विचार करना जैसे अन्य उद्देश्य भी शामिल हैं।
भारत में होने वाली कुल मौतों में कैंसर सहित गैर-संचारी रोगों का हिस्सा लगभग 63 प्रतिशत है। देश में कैंसर के मामले 2020 की तुलना में 2025 में लगभग 13 प्रतिशत तक बढ़ सकते हैं। 2022 के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में कैंसर के मामलों की अनुमानित संख्या 14,61,427 है। अनुमान है कि 2020 की तुलना में 2040 तक भारत में कैंसर के मरीज बढ़कर 20 लाख तक हो जाएंगे। ऐसे में भारत के लिए इससे निपटना काफी अहम है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सर्वाइकल कैंसर से लड़ने के लिए सैंपल किट, टेस्ट किट और वैक्सीन के लिए देशों को करीब 62 करोड़ रुपये की मदद का ऐलान किया है। प्रधानमंत्री ने यह भी घोषणा की कि भारत हिंद-प्रशांत देशों के लिए 4 करोड़ वैक्सीन खुराक देगा और रेडियोथेरेपी उपचार में भी सहयोग करेगा। भारत कैंसर की जांच और देखभाल के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र के इच्छुक देशों को तकनीकी सहायता भी प्रदान करेगा।
भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कैंसर परीक्षण, जांच और निदान के लिए 7.5 मिलियन डॉलर का योगदान देगा। भारत गावी और क्वाड पहल के तहत 40 मिलियन वैक्सीन उपलब्ध कराएगा। व्हाइट हाउस ने सर्वाइकल कैंसर को ” काफी हद तक रोके जाने योग्य बीमारी बताया जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बड़ा संकट बना हुआ है।
सर्वाइकल कैंसर गर्भाशय के निचले हिस्से से जुड़ा होता है। यह बीमारी आमतौर पर 30 साल की उम्र के बाद महिलाओं में होती है। यह भारत में ब्रेस्ट कैंसर के बाद महिलाओं को दूसरा सबसे ज्यादा होने वाला कैंसर है और 44 साल तक की महिलाओं में यह बीमारी आम है। देश में हर साल इसके 1.6 लाख से अधिक मामले सामने आते हैं और हजारों महिलाओं को इसके कारण अपनी जान गंवानी पड़ती है।
पैप और एचपीवी परीक्षण नियमित रूप से गर्भाशय कैंसर की जांच ही इस कैंसर की रोकथाम का आधार है। इन जांचों से कैंसर से पहले की स्थितियों का जल्दी पता लगाया जा सकता है, जिससे समय रहते हस्तक्षेप किया जा सकता है।
स्त्री रोग संबंधी कैंसर महिलाओं के लिए एक गंभीर स्वास्थ्य चिंता का विषय है, लेकिन यह असाध्य नहीं है। जांच के माध्यम से शीघ्र पता लगाने और लक्षणों के बारे में अधिक जागरूकता से उपचार के अधिक सफल परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। टीकाकरण, स्वस्थ जीवनशैली और नियमित जांच जैसे निवारक उपायों को अपनाकर महिलाएं अपने स्वास्थ्य की देखभाल कर सकती हैं और स्त्री रोग संबंधी कैंसर के खतरे को कम कर सकती हैं।
फलों और सब्जियों से भरपूर आहार गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के जोखिम को कम कर सकता है। इन खाद्य पदार्थों में एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा अधिक होती है, जो कैंसर से बचाने में मदद कर सकते हैं। नियमित शारीरिक गतिविधि और स्वस्थ वजन बनाए रखना भी कैंसर के जोखिम को कम करने में योगदान दे सकता है। धूम्रपान एक अन्य कारक है जो गर्भाशय-ग्रीवा कैंसर के जोखिम को बढ़ाता है।
गर्भाशय के कैंसर की रोकथाम में धूम्रपान बंद करना आवश्यक है। तम्बाकू के धुएं में मौजूद हानिकारक पदार्थ गर्भाशय की कोशिकाओं सहित अन्य कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं और कैंसर के विकास को जन्म दे सकते हैं।
महिलाओं को 21 वर्ष की आयु से गर्भाशय-ग्रीवा कैंसर की जांच शुरू कर देनी चाहिए। 21 से 29 वर्ष की महिलाओं को हर तीन साल में पैप परीक्षण करवाना चाहिए। 30 से 65 वर्ष की आयु वाली महिलाओं को हर पांच साल में पैप परीक्षण और एचपीवी परीक्षण (सह-परीक्षण) या हर तीन साल में केवल पैप परीक्षण करवाना चाहिए।
(लेखिका, राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
